तरल संवेदना और सघन अनुभूति के साथ जनता के पक्ष
में खड़ी हैं ‘’मीरखां का सजरा’’ की कवितायेँ                वसुन्धरा पाण्डेय 
कहाँ से शुरू की जाए
बात?..क्या पकड़ा जाय  क्या छोड़ा जाय ..? सच
कहूँ तो ‘’मीरखां का सजरा’’ की कवितायेँ तरल संवेदना और सघन अनुभूति की कवितायेँ
है, हाल में ही प्रकाशित इनके दूसरे काव्य संग्रह ‘मीरखां का सजरा’ की
कविताओं  में  कवि-मन की बेचैनी,छटपटाहट बखूबी उभर कर सामने
आती है ! श्रीरंग की  कविताओं का एक
विस्तृत संसार है, इनकी कवितायेँ केवल एक वर्ग विशेष के लिए नही है बल्कि इस देश
के तमाम उन लोगों के लिए है जिन्हें  आम
आदमी के रूप में चिन्हित किया जाता है, श्रीरंग 
अपने आस पास घटित होते मनुष्य के हर क्षण के क्रिया कलापों को कविता में
इतनी बारीकी से पिरोते  है कि एक विशेष
प्रकार की भावधारा सृजित होने  लगती है
जिसके सरोकार सामाजिक होते हैं , इस संकलन में कई प्रकार की बेशकीमती कवितायेँ हैं
जिसकी  पुष्टि संग्रह की पहली कविता पढ़ते
ही होने लगती है 
इलाहाबाद के चकला घर
‘’मीरगंज’’ के सन्दर्भ में जनश्रुति पर आधारित उनकी  पहली और लम्बी कविता को पढ़ते हुए आप उसके
मिथकीय प्रवाह में बहने लगेंगे, मीरखां ; जो अपनी दो कनीजों के साथ इरान से आते
हैं और---कुछ लाइने बानगी के तौर पर प्रस्तुत है ---
‘’मीरखां भडुवे नही थे 
उनके वालिद भी नही थे दलाल 
मियां मीर अमीर थे / अपने जमाने के कला पारखी 
जाने –माने उस्ताद / गजब की थी मियां की नजर
उनकी मेहनत और / उनकी मशक्कत का ही 
कमाल था कि / मीर खां ने दी /
एक से बढ़कर एक अदाकारा /मिट जाते थे मिटने
वाले 
क्या मजाल था कि कोई छू भी सकता किसी को--- 
तहजीब थी ,तमीज थी ,कलाकार नही थे वे 
कलाकारों के उस्ताद थे मीर खां...’’
कविता का एक और धारदार व्यंगात्मक स्वर --.
‘’सावधान / महाधिराज पधार रहे हैं 
पूरा नगर / नगरपाल / नगरपति सावधान 
काले शीशे वाली गाड़ियों में / पधार रही हैं महारानिया ...’’
तीखे व्यंग्य  से बहुत सारी
बातों को कितनी सुघड़ता से प्रयोग में लाते हैं श्रीरंग --
‘’महाराज की जो प्रिय बनना चाहती हैं
सुर्ख गुलाबों की माला लेकर हाजिर हों
एक महाराजधिराज को खुश करने के लिए 
क्या –क्या जुगत किये जा सकते हैं.
बुलेटप्रुफ व्यवस्था से सुरक्षित संतो से आशीर्वाद लेना 
फिर विशालकाय भींड को संबोधित करेंगे 
परिवहन अधिकारी सावधान/नगर की सभी बसें कारें ,जीपें बेगार में लगी
होनी चाहिए /
पदाधिकारी सावधान – भींड कम नही होनी चाहिए/ पुलिस अधिकारी सावधान
जनता से अधिक पुलिस रहनी चाहिए / 
सावधान—काला झंडा नही दिखना चाहिए महाराज को / सावधान प्रधानाचार्यों
/ 
स्कूल  के बच्चे स्वागत की
झंडिया लिए बल्लियों के पीछे खड़े रहने 
चाहिए /
महाराज को भींड बहुत पसंद है / जितनी बड़ी भींड खुद को उतना बड़ा महसूस
करते हैं महाराज..
.प्रेस पत्रकार सावधान / महाराज का गुणगान होना चाहिए...
सावधान / जनता सावधान / लोकतंत्र सावधान / सावधान 
लोगों से सावधान / महाराजधिराज पधार रहे हैं / 
किसी पर भी गिर सकती है गाज....!’’___________________
काव्य संग्रह : मीरखां का सजरा
कवि : श्रीरंग 
प्रकाशक : साहित्य भण्डार, 50 चाहचंद, जीरो रोड इलाहाबाद
मूल्य : 250 रुपये_______________________________

 
 
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